प्रिय बंधुओ ,
सर्व प्रथम हमें यह समझना है की अध्यात्म क्या है ?
क्या भगवान की पूजा करना अध्यात्म है ? क्या कीर्तन करना अध्यात्म है ? क्या मंदिर में जाना अध्यात्म है ? क्या किसी गुरु के प्रवचन सुनना अध्यात्म है ?
नहीं ये सभी कुछ अध्यात्म नहीं है तो फिर अध्यात्म क्या है ।
जैसा की नाम से ही विदित है अध्य +आत्म । आत्म कहते है स्वयं को तो स्वयं का अध्ययन करना ही अध्यात्म है । तो अध्यात्म का अर्थ है स्वयं को जानना ।
अब आप स्वयं सोचे की क्या स्वयं का अध्ययन करने के लिए किसी पूजा -पाठ की आवश्यकता है ? क्या मंदिर जाने से स्वयं को जान जायेंगे । क्या किसी प्रवचन सुनने से स्वयं का ज्ञान हो जायेगा । नहीं कदापि नहीं ।
स्वयं को जानने के लिए सबसे जरुरी है की आपमे स्वयं को जानने की इच्छा पैदा हो जाये इसी इच्छा को जिज्ञासा कहते है ।
जब आपमे स्वयं को जानने की याने अध्यात्म की उत्कट इच्छा पैदा हो जाएगी तो आप निःसंदेह स्वयं को जान जायेंगे याने अध्यात्म को जान जायेंगे अर्थात आत्मज्ञान प्राप्त कर लेंगे ।
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